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कबीर जयंती के अवसर पर ‘कबीर जन्मोत्सव समिति’ दिनांक 4-11 जून, 2023 तक ‘ताना-बाना कबीर का..” कार्यक्रम आयोजित कर रहा है

 

संवाददाता वसीम अहमद की रिपोर्ट 

कबीर की मुख्य चिंता थी – तेरा मेरा मनवा कैसे एक होई रे।
कबीर जयंती के अवसर पर ‘कबीर जन्मोत्सव समिति’ दिनांक 4-11 जून, 2023 तक ‘ताना-बाना कबीर का..” कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। इस कड़ी में आज दिनांक 8 जून को आयोजन का पांचवां दिन रहा। आज का कार्यक्रम दो भिन्न इलाकों जलालीपुरा और बजरडीहा में हुआ। बजरडीहा के कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में बुनकर साझा मंच के फजलुर्रहमान अंसारी, पटना के सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक नरेंद्र कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता पारमिता जी, बुनकर साथी एहसान अली और बुनकर साथी नसरुद्दीन अंसारी रहे। कार्यक्रम की शुरुआत राजस्थान के जनगीत समूह ‘दखल’ समूह ने अपनी जनगीत प्रस्तुति से समाज की संरचना को खोलकर रख दिया। उनके गीतों में स्पष्ट हुआ कि अन्न उगाने वालों को अन्न नहीं, वस्त्र बनाने वाले को कपड़ा नहीं और घर बनाने वाले को घर नहीं मिल रहा है, यानी मेहनतकश वर्ग आधुनिक सुविधाओं से वंचित है।
श्री फजलुर्रहमान ने कहा कि कबीर मूलतः बुनकर थे। आज कबीर के नाम पर दुनिया भर में भारत की और बनारस की पहचान है। बनारसी साड़ी की पहचान आज भी विश्व स्तर पर है। लेकिन कबीर की परम्परा का वाहक बुनकर समाज आज भयावह स्थितियों में जी रहा है। उसमें पलायन बढ़ रहा है, लेकिन उन्हें बांटने के लिए सरकारें तरह-तरह के षड्यंत्र करती हैं। उन्होंने कहा कि बुनकर समाज के लोग बिजली के रेट में हेराफेरी से बहुत परेशान हैं। बिजली विभाग के भ्रष्टाचार का सर्वाधिक गलत प्रभाव कमज़ोर बुनकरों पर पड़ा है।
पटना के नरेंद्र कुमार ने कहा कि बनारस का मेहनतकश बुनकर आज सूरत, बैंगलोर जैसे बड़े उद्योगिक शहरों में काम की तलाश में दर-दर भटक रहा है। वह अपनी ही ज़मीन से बेदखल हो रहा है। अपनी ज़मीन पर कम से कम वह अपने भाई-चारे के सामाजिक सम्बन्ध से जुड़ा था। सूरत, बैंगलोर और लुधियाना में तो बड़े सेठ और पूंजीपतियों ने उनसे अपना समाज भी छीन लिया है। आज कपड़ा बनाने वाले मेहनतकशों को रोटी देने वाले किसानों और मकान बनाने वाले मेहनतकशों के साथ खड़ा होना पड़ेगा, वरना हमारा संघर्ष व्यापक और बड़ा नहीं हो सकेगा।
सामाजिक कार्यकर्ता पारमिता जी ने कहा कि बुनकर हमें सभ्य बनाते हैं। इस मायने में वे हमारे बुनियादी साथी हैं, लेकिन हमारे साथी बिखरे हुए हैं। आज हमारी एकजुटता की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।
बुनकर साथी जाहिद नासिर, एहसान अली, नसीरुद्दीन अंसारी ने भी एकजुटता का आह्वान किया। भारतीय फन ए सिपहगिरी एसोसिएशन उत्तर प्रदेश मिडिया प्रभारी वसीम अहमद एवं अन्य साथियों की कार्यक्रम के संयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका रही।
बजरडीहा के साथ-साथ जलालीपुरा में भी एक छोटी-सी सभा हुई और उसमें भी कबीर के जीवन, साहित्य, दर्शन और वर्तमान बुनकरी की समस्या पर बातचीत की गई। सभा का संचालन करते हुए अब्दुल रफ़ी एवं विस्मिल्ला अंसारी ने जलालीपुरा एवं बनारस के बुनकरों की दयनीय स्थिति से स्रोताओं एवं अतिथियों को अवगत कराते हुए कहा कि आज बुनकरों की सबसे बड़ी समस्या बिजली के दरों में बढ़ोतरी की है। मौजूदा सरकार ने हमारी बुनकरी को बर्बाद करने के लिए बिजली की दरों को बेतहाशा बढ़ा दिया है, लेकिन हम यह दर देने की स्थिति में नहीं हैं, क्योंकि हमारी आय इतनी नहीं है। हम इसके खिलाफ लड़ेंगे।
इंडियन यूथ फाउंडेशन के महासचिव मकबुल अहमद ने कहा कि बुनकरों में एकता की ज़रुरत है। सभी को बिजली के फ्लैट रेट की पुरानी व्यवस्था के लिए संघर्ष करना चाहिए।
भारतीय किसान यूनियन के पूर्वांचल उपाध्यक्ष लक्ष्मण प्रसाद मौर्य ने लोगों के समक्ष कबीरदास के दर्शन को रखा। कबीर ने श्रम से जुड़े धर्म की बात की थी। उन्होंने किसानों और बुनकर कारीगरों की एकता की बात की, क्योंकि दोनों की स्थिति आज बद-से-बदतर होती जा रही है। उन्होंने कबीरदास की पंक्तियों में ही कहा –
तेरा मेरा मनवा कैसे एक होई रे।
तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आंखन की देखी।।
मैं कहता सुलझावन हारा, तू रहियौ उरझाई रे।।
पटना से आए ‘विकल्प’ पत्रिका के संपादक इन्द्रजीत कुमार ने कबीर के सहज और साधारण जीवन की चर्चा की। उन्होंने कहा कि कबीरदास बुद्ध के बाद सबसे बड़े क्रांतिकारी पुरुष थे। मध्यकालीन भारत में हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे से लड़ते-झगड़ते रहते थे और धार्मिक पाखंड में डूबे हुए थे। ऐसी विषम स्थिति में कबीरदास ने जाति और धार्मिक पाखंड के खिलाफ खुलकर बोला और लोगों को प्रेम का पाठ पढ़ाया। उन्होंने कहा था-
पोथी पढ़ी-पढ़ी जुग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।
बुनकर साझा मंच के फजलुर्रहमान अंसारी ने कहा कि बुनकरों की समस्या केवल बिजली के दरों में बढ़ोतरी की ही नहीं है, बल्कि मुनाफा में बढ़ोतरी की भी है। बुनकरों की हालात इसलिए भी खराब है, क्योंकि उनके काम की उचित मजदूरी नहीं मिलती है। हम 12-12 घंटे तक पूरे परिवार के साथ काम करते हैं, फिर भी हमारे प्रतिदिन की आमदनी लगभग 150-200 तक ही है। इस आमदनी में हमारा विकास संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि बुनकर केवल मुसलमान नहीं हैं, बल्कि हिन्दू भी हैं। इसलिए हमें आपसी एकता बनाकर अपने अधिकार के लिए लड़ना होगा। अगर हम नहीं लड़ेंगे, तो बड़े-बड़े कंपनियों के मालिक हमें तबाह कर देंगे। हमारे लोग अब गुजरात, बैंगलोर जैसे शहरों में पलायन कर रहे हैं। इसलिए हमें कबीरदास को अपनी साझा संस्कृति का हिस्सा बनाना होगा और अपने अधिकारों के लिए लड़ना होगा।
अंतिम वक्ता के रूप में ‘मेहनतकश’ पत्रिका की श्रेया ने कहा कि सरकार बुनकरी को एक बीमार उद्योग कहकर इसे खत्म करने की शाजिश कर रही है, जबकि यही उद्योग पूरे पूर्वांचल को रोजगार मुहैया कराती है। यह एक बड़ा उद्योग है, जिसे बढ़ाने की जरूरत है, लेकिन सरकार बड़े-बड़े पूंजीपतियों को बढ़ावा दे रही है और इसे खत्म करने की कोशिश कर रही है। अतः हम सबको एकजुट होकर लड़ने की जरूरत है। अंत में उन्होंने 11 जून को बुनकर कॉलोनी, नाटी इमली में होनेवाले कार्यक्रम में सभी को आने का आह्वान किया। स्रोताओं ने बड़े धैर्य से वक्ताओं की बात सुनी और 11 जून को नाटी इमली आने का आश्वासन दिया।
कबीर जन्मोत्सव समिति
(सरदार मकबूल हसन, चित्रा सहस्रबुद्धे, मोहमद अहमद अंसारी, फजलुर्रहमान अंसारी, मनीष शर्मा, पारमिता, निहार, श्रेया, लक्ष्मण प्रसाद मौर्या, इंद्रजीत, सौरव कुमार, हरिश्चन्द्र बिन्द, पराग, एहसान अली, जुबेर खान बागी, मो इम्तियाज उर्फ़ गामा, जाहिर नासिर)

Viyasmani Tripathi

Cheif editor

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