क्रोध संतापयुक्त विकलता की दशा है, क्रोध मे व्यक्ति की सोचने समझने की क्षमता लुप्त हो जाती है, क्रोध आने पर संयम रखना चाहिए…. वात्सल्य आचार्य नरेंद्र मुनि जी महाराज
Anger is a condition of anxious restlessness; in anger, a person's ability to think and understand is lost; one should maintain restraint when angry.... Vatsalya Acharya Narendra Muni Ji Maharaj
ब्यूरो रिपोर्ट… अनीता पाल
रुद्रपुर…क्रोध या गुस्सा एक भावना है। दैहिक स्तर पर क्रोध करने/होने पर हृदय की गति बढ़ जाती है; रक्त चाप बढ़ जाता है। यह भय से उपज सकता है। भय व्यवहार में स्पष्ट रूप से व्यक्त होता है जब व्यक्ति भय के कारण को रोकने की कोशिश करता है। क्रोध मानव के लिए हानिकारक है। क्रोध कायरता का चिह्न है।सनकी आदमी को अधिक क्रोध आता है उसमे परिस्थितीयो का बोझ झेलने का साहस और धैर्य नही होता।क्रोध संतापयुक्त विकलता की दशा है। क्रोध मे व्यक्ति की सोचने समझने की क्षमता लुप्त हो जाती है और वह समाज की नजरो से गिर जाता है।क्रोध आने का प्रमुख कारण व्यक्तिगत या सामाजिक अवमानना है।उपेक्षित तिरस्कृत और हेय समझे जाने वाले लोग अधिक क्रोध करते है। क्योंकि वे क्रोध जैसी नकारात्मक गतिविधी के द्वारा भी समाज को दिखाना चाहते है कि उनका भी अस्तित्व है।क्रोध का ध्येय किसी व्यक्ति विशेष या समाज से प्रेम की अपेक्षा करना भी होता है।
प्रवचनों की श्रंखला के तहत जैन समाज के नरेंद्र मुनि महाराज ने प्रवचन करते हुए कहा कि श्रद्धा ही भक्ति की नींव हैं।हमें अपने ईश्वर,गुरू में हमेशा श्रद्वा रखनी चाहिए।
एक बार बहुत पहले की एक कहानी के प्रवचन में कहा कि हजारों वर्ष पहले एक महान राजा का राज्य हुआ करता था
वह अपने प्रजा के लिए हमेशा सेवा में तत्पर रहता था। तन मन धन से प्रजा की सेवा करता था। इस बात को सुनकर एक महात्मा जी राजा के महल में पधारे। राजा ने उनकी तन मन धन से सेवा की।
राजा की इस सेवा से प्रसन्न होकर महात्मा ने राजा से कहा कि जब किसी भी टाइम आपको क्रोध आ जाए तो भगवान को याद कर ले और अपने क्रोध पर काबू पाने का प्रयन्त करे।
कुछ वर्षों बाद राजा जंगल में शिकार के लिए रवाना हुआ, इस दौरान राजा की पत्नी और उसकी पुत्री आपस में राजा रानी का भेष बदलकर अपना नाट्य करने लगीं।
इस दौरान अचानक कुछ देर बाद जंगल से राजा की वापसी महल में होती है। अपनी रानीको पराए मर्द के साथ आपस में गला लगाकर मिलते हुए राजा बहुत ज्यादा क्रोधित हो गया। और क्रोधित होकर तलवार लेकर उनकी ओर दौड़ पड़ा।
लेकिन इस दौरान राजा को महात्मा की उस बात की याद आ गई कि महात्मा जी ने कहा था कि अपने क्रोध को शांत रखना चाहिए। अपने क्रोध को शांत करते हुए राजा तलवार छोड़कर उन दोनों के पास पहुंचा जहां रानी और उनकी बेटी बेस बदलकर आपस में गले लगे हुए थे।
आपस में मां बेटी को आपस में गले देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और महात्मा जी के द्वारा क्रोध पर काबू पाने के लिए सुनाए गए इस प्रवचन का धन्यवाद किया।
अर्थात मुनि जी की इस प्रवचन से संदेश मिलता है कि
हमें अपने क्रोध पर काबू रखना चाहिए, क्रोध पर काबू रखने वाले जीव का ही परमात्मा से मिलन हो पाता है