खैरथल- तिजारादेशधर्मब्रेकिंग न्यूज़राजस्थान
अरावली की गोद में बसा रेणागिरी धाम: आस्था, सेवा और साधना का संगम

जयबीर सिंह (खैरथल तिजारा)
मुंडावर। अरावली पर्वतमाला की सुरम्य गोद में स्थित बेनामी आश्रम रेणागिरी धाम न केवल आध्यात्मिक चेतना का स्रोत है, बल्कि श्रद्धा, सेवा और प्रकृति प्रेम का अनुपम उदाहरण भी बन चुका है। मुंडावर नगरपालिका से लगभग 4 किलोमीटर दूर मुंडावर-पेहल मार्ग पर बसे इस दिव्य धाम की स्थापना बेनामी सम्प्रदाय के संत शीतलदास जी महाराज ने आज से करीब 151 वर्ष पूर्व की थी।यह स्थल भगवान परशुराम की माता रेणुका के नाम पर बसा है, जिसे श्रद्धालु ‘रेणागिरी धाम’ के नाम से जानते हैं। बताया जाता भगवान परशुराम की माताजी रेणुका ने यहां घोर तप किया,तप पूर्ण होने पर जब उन्हें जल की आवश्यकता पड़ी तब भगवान परशुराम ने अपना फरसा जमीन में मारकर जल निकाला था,जिसके प्रमाण आज भी मौजूद है। यह वही भूमि है जहां भगवान परशुराम ने भी घोर तपस्या की थी और जिसकी तलहटी में स्थित परशुराम कुंड आज भी आस्था का केन्द्र बना हुआ है। यहीं शीतलदास जी ने तपस्या कर परशुराम जी के दर्शन प्राप्त किए और एक आध्यात्मिक आश्रम की नींव रखी।
*बेनामी सम्प्रदाय की गौरवगाथा*
बेनामी सम्प्रदाय का उद्भव भूरा सिद्ध आश्रम, अलवर से हुआ था। इसके संस्थापक महाराज रणजीत सिंह बेनामी थे, जिन्हें दीक्षा स्वयं कक्करदास जी महाराज से प्राप्त हुई थी। कक्करदास जी का मूल नाम गंगाराम था और वे हरियाणा के मिलकपुर गांव से थे। संत शीतलदास जी महाराज इस परंपरा की महत्वपूर्ण कड़ी रहे, जिनकी पीठ आज स्वामी बालकादेवाचार्य जी महाराज संभाल रहे हैं।
*“घोड़े वाले बाबा” के नाम से प्रसिद्ध हैं महाराज जी*
वर्तमान पीठाधीश्वर स्वामी बालकादेवाचार्य जी को उनके घोड़ों से प्रेम और सेवा कार्यों के लिए जाना जाता है। आश्रम में कई नस्लों के घोड़े पाले जाते हैं, जिनमें “चेतन” और “पर्वत” जैसे घोड़े राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में धूम मचा चुके हैं। इसी कारण उन्हें श्रद्धालु “घोड़े वाले बाबा” के नाम से भी पुकारते हैं।
*गौसेवा, पर्यावरण प्रेम और मानव सेवा की त्रिवेणी*
बेनामी आश्रम में प्राचीनकाल से ही गौसेवा की परंपरा रही है, जिसे महाराज जी ने एक नई ऊंचाई दी। आश्रम में एक विशाल गौशाला संचालित है और पशुचिकित्सालय निर्माणाधीन है। पर्यावरण के प्रति प्रेम के चलते हर वर्ष बड़े स्तर पर वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।
*वेद पाठशाला और रक्तदान शिविर की प्रेरक पहल*
वेदों के प्रचार-प्रसार के लिए आश्रम में ‘वेद पाठशाला’ चलाई जा रही है। साथ ही, हर साल फाल्गुन बदी पंचमी पर आयोजित लक्खी मेले से पूर्व विशाल रक्तदान शिविर का आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं।
*रेणागिरी के सप्त कुंड – आस्था के सजीव प्रमाण*
इस तपोभूमि की पहाड़ियों में स्थित सात पवित्र कुंड – परशुराम कुंड, जगदग्नी कुंड, पणिहारी कुंड, काला कुंड, बोखराज कुंड, भैरु खोला कुंड और अधरकुंड – आज भी ईश्वर की व्यापकता और आश्रम की दिव्यता के साक्षी हैं।
*शोध और पहचान:* राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित
बेनामी आश्रम पर डॉ. रजनीश कुमार द्वारा “संत परंपरा और बेनामी संत शीतलदास” विषय पर शोधकार्य पूरा किया गया है। आश्रम पर कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय शोध पत्र और लेख प्रकाशित हो चुके हैं, जो इसकी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक भूमिका को रेखांकित करते हैं।रेणागिरी धाम आज न केवल मुंडावर क्षेत्र की आत्मा है, बल्कि भारत की संत परंपरा और आध्यात्मिक विरासत का गौरवमयी प्रतीक बन चुका है। यह धाम आस्था, सेवा, साधना और सामाजिक सरोकारों का संगम स्थल है, जहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु आत्मिक शांति की तलाश में आते हैं।