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शांति निकेतन की बेटियों ने आत्मरक्षा प्रशिक्षण में हासिल की महारत बढ़ाया आत्मविश्वास!

ब्यूरो चीफ सन्तोष कुमार गर्ग
बालोतरा l विद्यालय प्रवक्ता एवं मीडिया प्रभारी अयूब के. सिलावट ने बताया कि शांति निकेतन स्कूल की छात्राओं ने सोमवार को संपन्न हुए 7-दिवसीय आत्मरक्षा प्रशिक्षण कार्यक्रम में शानदार प्रदर्शन कर आत्मविश्वास और सशक्तिकरण की एक नई मिसाल कायम की है। इस गहन पहल का उद्देश्य छात्राओं को वास्तविक दुनिया की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करना था, और समापन समारोह में उनकी नई क्षमताओं का अद्भुत प्रदर्शन देखने को मिला। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में विद्यालय की 200 बालिकाओं ने प्रशिक्षण से लाभान्वित हुए l इस प्रशिक्षण का उद्देश्य छात्राओं को केवल आत्मरक्षा के तकनीकी कौशल सिखाना नहीं था, बल्कि उन्हें मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक रूप से मज़बूत बनाना भी था, ताकि वे किसी भी विषम परिस्थिति का साहसपूर्वक सामना कर सकें। इस कार्यक्रम की शुरुआत राजस्थान पुलिस से सेल्फ डिफेंस स्टेट ट्रेनर पार्वती तथा अचली द्वारा की गई, जिन्हें आत्मरक्षा के क्षेत्र में व्यापक अनुभव प्राप्त है। उन्होंने प्रशिक्षण में अहम भूमिका निभाई।
प्राचार्या सुधा मदान ने सर्वप्रथम श्रीमान एसपी महोदय अमित जैन का धन्यवाद प्रेषित किया जिनकी मार्गदर्शन से ही हमारे छात्राओं का यह आत्मरक्षा प्रशिक्षण सफलतापूर्वक संपन्न किया गया l तत्पश्चात उन्होंने राजस्थान पुलिस से सेल्फ डिफेंस स्टेट ट्रेनर पार्वती तथा अचली का धन्यवाद ज्ञापित किया जिन्होंने सात दिवसीय आत्मरक्षा प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत छात्राओं को प्रशिक्षित किया l विद्यालय व्याख्याता सईदा सुल्ताना तथा अफजल अंजुम ने सात दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत ट्रेनर तथा बच्चों में सामंजस्य बनाए रखा तथा पूरे प्रोग्राम को कोऑर्डिनेट किया l
शांति निकेतन स्कूल की यह पहल न केवल विद्यालय की चारदीवारी तक सीमित है, बल्कि यह पूरे समाज को एक संदेश देती है—जब बेटियाँ सशक्त होती हैं, तो समाज स्वतः सुरक्षित और मज़बूत बनता है। यह प्रशिक्षण एक मिसाल है कि कैसे स्कूल शिक्षा के साथ-साथ सुरक्षा और आत्मविश्वास का माहौल भी दे सकते हैं। “हमारी बेटी किसी से कम नहीं” अब केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक व्यवहारिक सच्चाई बन चुकी है, जिसे शांति निकेतन की बेटियों ने अपने साहस, अभ्यास और आत्मबल से साकार कर दिखाया है।
प्रशिक्षण के दौरान छात्राओं को अनेक गतिविधियों और व्यावहारिक तकनीकों से परिचित कराया गया, जिनमें सावधान, विश्राम, सोमन रे (जापानी अभिवादन शैली), राइडिंग हॉर्स, फाइटिंग पोजीशन, वार्म-अप, नेक रोटेशन, हैंड रोटेशन, शोल्डर रोटेशन, स्ट्रेचिंग और प्राणायाम प्रमुख रहे। इसके अतिरिक्त, आत्मरक्षा की व्यावहारिक तकनीकें जैसे पंचिंग, कीकिंग, ग्रैब-रिलीज़, एल्बो अटैक, आवाज़ के ज़रिए खतरे का संकेत देना, रोल-प्ले एक्टिविटी और रियल-टाइम सिचुएशन ड्रिल भी करवाई गईं। छात्राओं को सिखाया गया कि केवल शारीरिक बल ही नहीं, बल्कि परिस्थिति की समझ, निर्णय क्षमता और आत्मविश्वास से भी आत्मरक्षा की जाती है।
इस प्रशिक्षण का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह था कि इससे छात्राओं के आत्मविश्वास में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। प्रशिक्षकों का मानना है कि आत्मरक्षा का उद्देश्य केवल लड़ना नहीं, बल्कि यह जानना भी है कि किसी भी संकट को कैसे रोका जाए, स्थिति को कैसे संभाला जाए, और जरूरत पड़ने पर कैसे प्रभावी प्रतिक्रिया दी जाए।
प्राचार्या सुश्री सुधा मदान ने कहा कि यह पहल केवल स्कूल तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि इसे एक आंदोलन के रूप में हर बालिका तक पहुँचाने का प्रयास किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि अब हमारी बेटियाँ न केवल शैक्षणिक क्षेत्र में बल्कि आत्मरक्षा जैसे जीवन-आवश्यक कौशल में भी आत्मनिर्भर बन रही हैं। उन्होंने बाकी स्कूलों से भी आग्रह किया है कि वह भी इस तरह के प्रशिक्षण छात्राओं को करवाया जाए, फलस्वरुप छात्राओं के आत्मविश्वास में अभूतपूर्व वृद्धि होगी l
प्रशिक्षण यह सुनिश्चित करता है कि बालिकाओं को केवल शिक्षा नहीं बल्कि जीवन जीने के लिए आवश्यक सुरक्षा और आत्मबल भी सिखाया जाए। आत्मरक्षा के अनेक लाभ हैं। यह छात्रों को सशक्त बनाता है, उनके आत्मविश्वास को बढ़ाता है, उन्हें अपने परिवेश के प्रति सजग बनाता है और उन्हें नेतृत्व कौशल प्रदान करता है। यह प्रशिक्षण छात्रों को न केवल बदमाशी जैसी स्थितियों से निपटने में मदद करता है, बल्कि उन्हें सामाजिक ज़िम्मेदारी भी सिखाता है। आत्मरक्षा तकनीकें जैसे कराटे, जूडो, और अन्य मार्शल आर्ट बच्चों को यह सिखाते हैं कि कैसे अपने शरीर को एक सुरक्षित अस्त्र की तरह उपयोग करें। यह उन्हें अनुशासन, साहस, सम्मान और जिम्मेदारी जैसे मूल्यों से भी जोड़ता है।
प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर आरती गोयल ने बताया कि शिविर के समापन दिवस पर छात्राओं ने डेमो के रूप में आत्मरक्षा के सीखे हुए गुरों का प्रभावशाली प्रदर्शन किया। वे फाइटिंग स्टांस में खड़ी थीं, हमलावरों को प्रतिकार कर रही थीं, और उनकी बुलंद आवाज़ ‘रूक जा!’ यह दृश्य भावुक करने वाला था, जब हर अभिभावक और शिक्षक ने गर्व से देखा कि कैसे ये बेटियाँ अब आत्मरक्षा में सक्षम हो गई हैं।