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स्वतंत्र सेनानी अमरचंद बांठिया की पुण्यतिथि पर किया याद

ब्यूरो चीफ सन्तोष कुमार गर्ग
बालोतरा।
भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्य समिति सदस्य गणपत बांठिया ने स्वतंत्र सेनानी अमरचंद बांठिया की पुण्यतिथि पर उनके चित्र पर पुष्प अर्पित करते हुए उनके बलिदान को याद किया।
भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्य समिति सदस्य गणपत बांठिया ने स्वतंत्र सेनानी अमरचंद बांठिया की पुण्यतिथि पर उनको याद करते हुए कहा कि झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की सहायता के लिए सिंधिया का अकूत दौलत से भरा “गंगाजली खजाना” खोलने वाले खंजाची अमरचंद बांठिया को अंग्रेजों ने ग्वालियर के सराफा बाजार में उनके घर के सामने नींम के पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी। *क्रूरता इतनी कि बांठिया जी के शव को 3 दिन तक पेड़ पर लटकाये रखा ताकि लोग यह समझ लें कि जो भी अंग्रेजों के विरोध में जाएगा उसका यही अंजाम होगा।* फांसी की बात देशभर में आग की तरह फैल गई और जब तक बांठिया जी का शव लटका रहा तब तक पूरे देश में शोक छाया रहा। मित्र, संबंधी, परिजन, रिश्तेदारों ने 3 दिन तक भोजन पानी ग्रहण नहीं किया और प्रतिज्ञा ली कि जब तक अंग्रेजों को इसका सबक नहीं सिखा देंगे तब तक चैन से नहीं बैठेंगे।अमरचंद बांठिया भारत की स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम के नायक थे। वे भगवान महावीर के अनुयायी, वीर योद्वा थे। जब 1858 की भीषण गर्मी में लू के थपेड़ों के बीच, झांसी की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई तथा उनके सेना नायक राव साहब और तात्या टोपे आदि, अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध करते हुए ग्वालियर के मैदान-ए-जंग में आ डटे थे। उस समय झांसी की रानी की सेना के सामने आर्थिक संकट आ खड़ा हुआ इससे स्वाधीनता का आंदोलन लड़खड़ाने लगा। यह बात सेठ अमरचंद बांठिया को पता चली तो उन्होंने अंजाम की परवाह किए वगैर तुरंत सिंधिया स्टेट का कीमत खजाना महारानी लक्ष्मीबाई की सहायता के लिए खोल दिया इससे स्वतंत्रता आंदोलन में गति आई। उनका मत था कि खजाना जनता से ही एकत्रित किया गया है। इसे जनहित में देना अपराध नहीं है पर अंग्रेजों ने इसे राजद्रोह माना और उन्हें राजद्रोही घोषित कर उनके विरुद्ध वारंट जारी कर दिया और मुकदमा चला दिया। सेठ जी को जेल में भीषण यातनाएं दी गयीं। मुर्गा बनाना, पेड़ से उल्टा लटकाकर चाबुकों से मारना, हाथ पैर बांधकर चारों ओर से खींचना, लोहे के जूतों से मारना, गुप्तांगों पर वजन बांधकर दौड़ाना, मूत्र पिलाना आदि अमानवीय अत्याचार किये गये। *अंतत: 22 जून 1858 को सराफा बाजार ग्वालियर में नीम के पेड़ पर लटका कर फांसी दे दी गई थी।* इससे 1857 की क्रान्ति में ग्वालियर का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा गया।अमर शहीद सेठ अमरचंद बांठिया जी की शहादत पर संपूर्ण जैन समाज को गर्व है। हम आजादी के 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर उनको याद करते हुए श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।