
ब्यूरो चीफ सतीश कुमार की रिपोर्ट
*नारनौल न्यूज़*
श्री गौ गोपाल प्रचार एवं असहाय सेवा संस्थान के तत्वावधान में सभी धर्म प्रेमी बन्धुओं के सहयोग से श्री कल्लू मल धर्माथ बगीची में चल रही श्री मद् भागवत कथा के तीसरे दिन मंगलवार को सर्वप्रथम आचार्य मनीष शास्त्री ने मुख्य यजमान महेश भालोठीया, सहयजमान सुरेश शर्मा, रमेश शर्मा को भागवत की आरती व विधान से व्यास पूजन करवाया। इसके बाद व्यास गद्दी से आचार्य बजरंग शास्त्रीजी ने बताया की घर परिवार का पालन पोषण करना हमारा धर्म है लेकिन हमारी हर एक श्वास में प्रभु का नाम स्मरण होता रहे यही मानव जीवन का परम धर्म है।
*आचार्य जी ने व्यास जी के जन्म , शुकदेव जन्म और परीक्षित जी के जन्म की और कलियुग आगमन,कुंती स्तुति ,भीष्म पितामह द्वारा देह त्याग ,राजा परीक्षित जी को संत के श्राप और शुकदेव आगमन की कथा सुनाई और इसके उपरांत शुकदेव द्वारा भगवान नारायण द्वारा बह्मा को चतु:श्लोकि भागवत उपदेश किया और बताया की किस प्रकार भगवान ने वराह रूप धारण किया और हिरण्याक्ष का उद्धार किया और रसातल मे गई पृथ्वी को लेकर आये। आचार्य जी ने बताया की भगवान नारायण की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण आरम्भ किया और सर्वप्रथम दस प्रकार की सृष्टि का वर्णन किया उसके उपरांत ब्रह्मा जी ने अपने शरीर से सृष्टि के पहले पुरुष मनु और स्त्री शतरूपा को महारानी को प्रकट किया।*
इसके बाद नरसिंह अवतार की सुंदर कथा वर्णन करते हुए बजरंग शास्त्री ने बताया की भगवान अपने भक्तो के लिये कुछ भी करने के लिये तैयार ही जाते है । भगवान के परम भक्त प्रहलाद को जब दुष्ट हिरण्यकश्यप ने बड़ा कष्ट दिया और अनेक प्रयत्न द्वारा प्रहलाद को मारने का प्रयत्न किया, लेकिन प्रहलाद का बाल भी बाँका नही कर पाया, क्योंकि कहते है की जाको राखे साईया मार सके ना कोय और बाल ना बाकौ कर सके जो जग बैरी होय। “जिसकी भगवान रक्षा करते है उसका कोई कुछ भी नही बिगाड़ सकता।
*आचार्य जी ने बताया की हम सभी लोग मनु कि संतान है इसलिये हम सभी मानव कहलाते है। इन्ही मनु जी के यहा पर तीन पुत्री आकुति , देवहूति, प्रसूति , और दो पुत्र प्रियव्रत और उत्तानपाद का जन्म हुआ और इन्ही से सृष्टि का विस्तार हुआ । आचार्य जी ने भागवत कथा मे कर्दम देवहूति संवाद , कपिल देवहूति संवाद सुनाया । सती चरित्र का वर्णन करते हुए बताया की जहाँ किसी जगह पर जाने पर अपमान हो आदर ना हो तो ऐसी जगह पर बिना बुलाये नही जाना चाहिए।*
माता सती बिना बुलाये पिता दक्ष के यज्ञ में गई और वहाँ पर माता सती को अपना और शंकर भगवान का अपमान सहन नही हुआ और योग अग्नि के द्वारा अपने शरीर को जलाकर भस्म कर दिया। इसके उपरांत आचार्य जी ने ध्रुव जी की कथा का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया और बताया कि ध्रुव जी ने केवल साढे पांच वर्ष की अवस्था में भगवान को प्राप्त कर लिया एवं कथा के अंत में ध्रुव जी की सुंदर झांकी का दर्शन भी करवाया गया।