हाईकोर्ट इलाहाबाद ने उत्तर प्रदेश की बियार जाति को अनूसूचित जनजाति का दर्जा मामले में केन्द्र व राज्य सरकार से मांगा जबाब

कल दिनांक 10 अक्टूबर 2022 को मा.उच्च न्यायालय इलाहाबाद में दाखिल रिट याचिका संख्या- *26445 आफ 2022 दिनेश कुमार बियार वर्सेस युनियन आफ इण्डिया एण्ड अदर्स* की सुनवाई कोर्ट नं.29 मा. न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा व मा.न्यायमूर्ति विकास बुधवार के समक्ष हुई,उक्त मामले में आदेश किए कि बियार समुदाय को विन्ध्य प्रदेश राज्य के लिए अधिसूचना दिनांक 20 सितम्बर 1951 के तहत अनूसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया था| राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के परिणाम स्वरूप का उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में विलय हो गया और इसलिए अनूसूचित जनजाति के रूप बियार समुदाय की स्थिती को संरक्षित किया जाना चाहिए था,और राज्य के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग में परिवर्तित नहीं किया जाना चाहिए था| उत्तर प्रदेश,खासकर,जब मध्यप्रदेश राज्य इसे अनूसूचित जनजाति का दर्जा देना जारी रखता है|वर्ष 1950 और 1951 में संविधान ने दिया था जनजाति का दर्जा तो अब वे पिछड़ा वर्ग में कैसे शामिल हुए| युनियन आफ इण्डिया एण्ड अदर्स के अधिवक्ताओं को चार सप्ताह का समय जबाब दाखिल करने हेतु समय निर्धारित है| तथा 28 नवम्बर 2022 सुनवाई तिथि निश्चित की गई है|
जिसमें याचिका कर्ता की तरफ से अभिषेक चौबे अधिवक्ता ने बहस किया|
याचिका कर्ता अपना दल एस राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य एवं
*अखिल भारतीय बियार समाज* के राष्ट्रीय महासचिव दिनेश बियार ने कहा कि बियार जाति नहीं एक संस्कृति है।
आरवी रसेल लिखित दी ट्राइव्स एंड काॅस्ट ऑफ दी सेंट्रल प्रोविंसेज ऑफ इंडिया, भाग- चार, बियार खंड, विलियम क्रुक्स लिखित दी ट्राइव्स एंड काॅस्ट ऑफ दी नार्थ वेस्टर्न इंडिया खंड-चार तथा डॉ. डीएन मजूमदार कृत दी रेसेज एंड कल्चर ऑफ इंडिया में दर्शित नजरी नक्शा तथा दी ट्राइवल मेप ऑफ इंडिया में बियार जाति आदिम जाति के रूप में वर्णित है। मध्य प्रांत व बरार में सम्मिलित रियासतों के भू-अधिकार आदेश एवं नियम ( सन् 1949 में प्रकाशित) में क्रमांक 13 में यह जाति आदिम जाति के रूप में मान्य रही है। अविभाजित मध्य प्रदेश में यह जाति आदिम जातियों की सूची में सम्मिलित रही है। विन्य प्रदेश राजस्व विभाग की अधिसूचना दिनांक 20 सितम्बर 1951 के माध्यम इस जाति को विंध्य प्रदेश के तात्कालीन 8 जिलों रीवा, सीधी, शहडोल, पन्ना, छतरपुर, सतना, टीकमगढ़, दतिया को छोडकर शेष विन्य क्षेत्र के लिए वंचित कर दिया गया। जो अवैधानिक है। अत: हम लोग पूर्ववत बहाली चाहते है|उन्होंने समाज के लोगों को भरोसा दिलाया कि जहाँ भी उनकी जरूरत पडेगी वे उनके साथ रहेगें|
मा. उच्च न्यायालय इलाहाबाद से उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश में अनूसूचित जनजाति का दर्जा देना जारी रहेगा|