हिमाचल प्रदेश का एक ऐसा शहर जहां दशहरा नहीं मनाया जाता और इसे अभिशाप माना जाता है.

रिपोर्ट विजय बैजनाथ
बैजनाथ (कांगड़ा). आज देशभर में दशहरा उत्सव (Dussehra Festival) मनाया जा रहा है. लोग बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मना रहे हैं. लेकिन हिमाचल (Himachal Pradesh) का एक ऐसा शहर भी भी है, जहां दशहरा नहीं मनाया जाता है और इसे अभिशाप माना जाता है.
बैजनाथ का भगवान शिव काफी मशहूर है. यह रावण की तपोस्थली है. इसी वजह से बैजनाथ (Baijnath) में दशहरा नहीं मनाया जाता है. इसके अलावा, शिव नगरी चंबा के भरमौर में रावण के पुतलों का दहन नहीं होता है.
पहले मनाया जाता था, बाद में बंद
70 के दशक में बैजनाथ में ऐतिहासिक शिव मंदिर (Shiv Temple) के मैदान में दशहरा मनाने का सिलसिला शुरू हुआ था. माना जाता है कि रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले बनाने और आयोजन में भूमिका निभाने वाले लोगों के साथ दुर्घटनाएं हुई तो लोगों ने दशहरा मनाना बंद कर दिया.
रावण ने बैजनाथ में की थी तपस्या
मान्यता है कि चार वेदों के ज्ञाता रावण ने बैजनाथ में तपस्या की थी. इसके चलते बैजनाथ को बैद्यनाथ के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि मंदिर से कुछ दूरी पर पपरोला जाने वाले पैदल रास्ते पर रावण का मंदिर और पैरों के निशान हैं.
यह भी है मान्यता
माना जाता है कि कैलाश पर तपस्या के बाद रावण ने इच्छा जताई. थी कि वह भगवान शिव को लंका ले जाना चाहता है. भगवान शिव ने उसकी ये इच्छा भी पूरी की और शिवलिंग में परिवर्तित हो गए. मगर उन्होंने कहा कि वह जहां मंदिर बनवाएगा वहीं, इस शिवलिंग को जमीन पर रखे. इसके बाद रावण भी कैलाश से लंका के लिए निकल पड़े. रास्ते में रावण को लघुशंका के लिए बैजनाथ में रुके और यहां पर भेड़ें चरा रहे गडरिए को उन्होंने शिवलिंग थमा दिया. क्योंकि शिवलिंग भारी था, इसलिए गडरिए ने इसे जमीन पर रख दिया और यह वहीं स्थापित हो गया.